जिसने प्रातः आँखें खोलीं,
उसको नमन, प्रणाम ..
स्मृति - विस्मृति का स्वामी जो,
उसको नमन, प्रणाम ..
जिसने चलते रखा है ढाँचे में, प्राणों को अभिराम
उसको नमन प्रणाम ..
शाश्वत मिथ्या, सत्य शाश्वत ; में कर सकूँ विभेद
जिसने इतनी चेतना डाली,
उसको नमन प्रणाम ..
होंगे तथ्य इतर बहुतेरे, परे समझ से मेरे
जिसने इतनी समझ भी डाली,
उसको नमन प्रणाम ..
लाभ-हानि तज, उचित- अनुचित का, भान कराया जिसने मन को
उसे प्रणाम, नमन, प्रणाम..
उसको नमन, प्रणाम ..
स्मृति - विस्मृति का स्वामी जो,
उसको नमन, प्रणाम ..
जिसने चलते रखा है ढाँचे में, प्राणों को अभिराम
उसको नमन प्रणाम ..
शाश्वत मिथ्या, सत्य शाश्वत ; में कर सकूँ विभेद
जिसने इतनी चेतना डाली,
उसको नमन प्रणाम ..
होंगे तथ्य इतर बहुतेरे, परे समझ से मेरे
जिसने इतनी समझ भी डाली,
उसको नमन प्रणाम ..
लाभ-हानि तज, उचित- अनुचित का, भान कराया जिसने मन को
उसे प्रणाम, नमन, प्रणाम..
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